गोवा अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन विश्वविद्यालय -- प्रस्ताव व सुझाव
गोवा सरकार तथा केंद्र सरकार के विचारार्थ
यथावकाश इसे संस्कारित कर यूएन आदि अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओंमे भेजा जा सकता है।
खण्ड - १
प्रारंभिक भैतिक सुविधाएँ जो गोवा सरकार की ओर से दी जाएगी -
१. १०० हेक्टर जमिन
२. निर्माण हेतू हर वर्ष १० करोड का प्रावधान ५ वर्षों तक।
३. निर्माण हेतू गोवा इण्डस्ट्रीयल डेव्हलपमेंट कार्पोरेशन पर उत्तरदायित्व सौंपा जाए।
४. पहले एक वर्ष तक ओएसडी के नेतृत्व मे एक दस व्यक्तियोंकी टीम जो प्रारंभिक सुविधाएँ उपलब्घ होने के लिये काम करेगी। (यही टिम महामहिम को रिपोर्ट किया करेगी)
खण्ड - २
अंतराष्ट्रीय पर्यटन विश्वविद्यालय की आवश्यकता-
सद्यकाल में पर्यटन एक आवश्यक तथा उभरते हुए व्यापार का मुद्दा बन गया है। जिस प्रकार उत्पादक व्यवसायोंमे व्यवस्थापन विशेषज्ञों की आवश्यक्ता को ध्यान में रखकर IIM जैसी संस्थाएँ बनी या फिर बँकिंग क्षेत्र की आवश्यक्ताओं के लिए बँक ट्रेनिंग संस्थाएँ बनीं, उस प्रकार इस पर्यटन क्षेत्रकी आवश्यक्ता के लिए विशेष शिक्षा तथा समर्पक कोर्स की रचना आवश्यक है। ऐसी शिक्षा प्राप्त व्यक्ति पर्यटनके क्षेत्रको नई दिशाओंमे फैलाकर इस व्यवसाय मे नई क्रांती ला सकते हैं और नये नये प्रयोग कर सकते हैं।
विश्वविद्यालय को अंतराष्ट्रीय बनानेकी क्या आवश्यक्ता है - यह प्रश्न भी पूछा जा सकता है। वैसे तो विश्वविद्यालय शब्दमें ही विश्व निहित है। फिर भी प्रस्तावित विश्वविद्यालय को विशेष रूप से आंतर्राष्ट्रीय बनानेके लिए कारण भी है कि यह विश्वविद्यालय दूर दूर देशों से विद्यार्थी आकृष्ट कर सके और इस प्रकार सही अर्थ में वैश्विक स्तर पर इसकी ख्याति फैले।
औचित्यका मुद्दा इस मुद्देके साथ भी जुडता है कि ऐसा विश्वविद्यालय में भारत में क्यों और गोवा में क्यों ? इसका कारण है। मानव जाती की उत्पत्ति, बौद्धिक विकास और भौतिक प्रगती के इतिहास को देखें तो उत्पत्ति काल करीब एक करोड वर्षका माना जा सकता है। बौद्धिक विकास का काल ३०००० से ४०००० वर्ष का माना जा सकका है। जिस कालमें कई एक संस्कृतियों का उदय हुआ अंत भी। एक भारतीय संस्कृती है जो टिकी हुई है। रामायण महाभारत जैसे ग्रंथों से उनका इतिहास पाँच सातसे दस हजार वर्ष पूर्व ज्ञात होता है, जबकी भारतमें बौद्धिक संस्कृती कमसे कम दस हजार वर्ष पूर्व की है। पर्यटन की दृष्टी से अति महत्वपूर्ण मुद्दा है कि समय का यह विस्तृत रंगमंच भारत भरमें अपने चिह्न और छाप छोड गया है। गोवा में भी वे सारे वर्तमान है। इस प्रकार गोवा को भी एक ऐतिहासिकता प्राप्त है, दूसरी ओर आधुनिकता भी योग्य और पर्याप्त मात्रामें गोवा के पास है। भौगोलिक वातावरण भी अनुकूल है। इसलिए विश्वविद्यालय आंतर्राष्ट्रीय हो, भारतमें हो और गोवामें हो यह औचित्यपूर्ण है।
खंड-३
पर्यटन की परिकल्पना
पर्यटन एवं घुमक्कडी मनुष्य का स्वभाव भी है और प्रगती के लिये आवश्यक भी। श्री चरक जैसे विद्वान ने बताया कि मनुष्य का व्यक्तित्व चार प्रकार से बनता है- जन्मगत वांशिक तथ्य, पालन-पोषन के दौरान पाये गये संस्कार, स्वबुद्धि का विकास तथा पर्यटन।
आज पर्यटन एक फलता- फूलता व्यवसाय बन गया है। दुनिया सिमट गई है - यातायात की सुविधाएँ पर्याप्त है और ज्ञानलालसा का तो कोई अन्त ही नही। इस कारण विश्वभरमें पर्यटन के लिये आने-जाने वाले पर्यटकों की संख्या में वृद्धि हे रही है। छ़ः साढे छः अरबकी जनसंख्या वाले विश्व में हर वर्ष करीब १ अरब (१०० करोड) आबादी पर्यटन करती है। भारत में प्रतिवर्ष आनेवाले पर्यटकों की संख्या करोडोंमें है, और गोवा मे आने वाले पर्यटकोंकी संख्या भी कई करोड है। इनका थोडासा विश्लेषण आवश्य़क है, क्योंकि उसीसे हमारी प्रस्तावित विश्वविद्यालयके शिक्षा प्रणालीकी रूपरेषा तय होगी।
विश्लेशण के मुद्दे- (हर मुद्दे पर थो़डा विस्तार आवश्यक है)
१. भारतीय और बाहरी
२. समय की उपलब्धी - ४ दिन या ४० दिन अर्थात् अल्पकालिक या दीर्घकालीक
३. सुविधाओ कीं उपलब्धि
४. उद्देश- विश्राम, सैरसपाटे, खाओ पिओ मौज करो, कँसिनो- बार-डान्स-शराब, समुद्र तट, सृष्टी सौदर्य, जलवायु की मौज, प्राचीनता, मंदिर-चर्च, स्थापत्य, खानपान-विशेषता लिया हुआ हर एक प्रांत का खानपान का चलन
५. बच्चोंके हेतु पर्याप्त रूचिपूर्ण क्रियाकलाप जैसे एस्सेल वर्ल्ड - तारांगण - म्युझियम - आदि
६. बच्चों हेतु बहुउद्देशीय शिबिर, युवाओंके शिबिर, विभिन्न विषयों को समर्पित राष्ट्रीय व आंतर्राष्ट्रीय शिबिर
७. इव्हेंट मँनेजमेंट - उत्सव-व्यवस्थापन - जैसे जत्रा, कार्निवल, शिगमो, नरकासुर-ध्वंस, गिरि-भ्रमण, सांस्कृतिक शोध, पुरातत्व तथा आनुवांशिकता विचार – आर्कियाँलाँजी व अन्थ्रोपोलाँजी
८. लोक कलाएँ -- संगीत, कथा, नाट्य, नृत्य, शिल्प, चित्र, इत्यादि. भाषाएँ - बोली भाषाएँ, लिपी
९. व्रत-तौहार, पारिवारिक व समाजिक प्रसंगोकी शैली, वैज्ञानिकता, भविष्यकालीन दृष्टी एवं विनिर्देश
उपर्युक्त चार विश्लेशण- प्रकारोंपर आधारित और खासकर उद्देशोंपर आधारित पर्यटन व्यवस्थापन कैसे किया जा सकता है- इस मुद्दे को कोर्स सिलँबस के गठन में प्राथमिकता दी जाएगी।
कोर्स के गठन इस प्रकार होंगे-
१. १० वी के आगे डिप्लोमा, स्नातक और स्नातकोत्तर
२. अल्पकालिक कोर्स - १ सप्ताह, २ सप्ताह, १ मास, ३ मास, ६ मास -- साथ ही अलग अलग व्यवसायोँ से जुडे किंतु पर्यटनके लिए आवश्यक व्यवसायोंके साथ (यथा हाँटेल, ट्रान्सपोर्ट, हस्तकला, लोकमंच इत्यादि ) इंटरडिसिप्लिनरी कोर्सेस ३ से ६ मास की अवधी के।
खण्ड ४
रोड मँप-
१. गोवा एवं केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजना
२. गोवा सरकार द्वारा आरंभिक सुविधाए देने की स्वीकृती, कँबिनेट तथा विधानसभा स्तरपर
३. ओ एस डी एवं उनकी टीम का गठन, कार्यालय, बजेट, वाहन व्यवस्था की सुविधा
४. टीम द्वारा भौतिक सुविधाओंका चयन
५. टीम द्वारा कुलपती एवं अन्य प्राध्यापकोंका चयन
६. कोर्स डिझायनिंग
७. GIDC द्वारा विश्वविद्यालय की वास्तू का निर्माण
८. कोर्सेस की संरचना
९. विद्यार्थी रजिस्ट्रेशन
१०. आर्थिक एवं प्रशासकीय ढाँचा तैयार करना
११. प्रत्यक्षतः कोर्सेस का आरंभ
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