Friday, October 10, 2008

जिन्हे नाज है हिन्द पर वो कहाँ हैं

Jinhe Naaz Hai Hind Par Wo Kahan Hai
Pyassa ( 1957 )A film by Guru Dutt, song by Sahir Ludhianvi, music Sachin Deo Burman, sung by Mohammad Rafi
जिन्हे नाज है हिन्द पर वो कहाँ हैं
जरा मुल्क के रहबरोंको बुलाओ
ये कूचे, ये गलियाँ, ये मंजर दिखाओ
जिन्हें नाज है हिन्द पर उनको लाओ जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहाँ हैं।

पूरा गीत ----------
ये कूचे, ये नीलामघर दिलकशी के। ये लुटते हुवे कारवाँ जिन्दगी के।
कहाँ हैं कहाँ हैं मुहाफिझ खुदी के, जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहाँ हैं।

ये पुरपैंच गलियाँ ये बदनाम बाजार। ये गुमनाम राही ये सिक्कों की झंकार।
ये इस्मत के सौदे, ये सौदों पे तकरार, जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहाँ हैं।

ये सदियोंसे बेखौफ सहमी सी गलियाँ। ये मसली हुई अधखिली जर्द कलियाँ।
ये बिकती हुई खोखली रंगरलियाँ, जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहाँ हैं।

वो उजले दरीचों में पायल की छनछन। थकी हारी साँसों पे तबले की धनधन।
ये बेरूह कमरों में खाँसी की ठनठन, जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहाँ हैं।

ये फूलों के गजरे, ये पीकों के छींटे। ये बेबाक नजरें, ये गुस्ताख फितरें.
ये ढलके बदन और ये बीमार चेहरे, जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहाँ हैं।

यहाँ पीर भी आ चुके हैं, जवाँ भी। तनोमन्द बेटे भी अब्बामियाँ भी।
ये बीवी भी है और बहन भी है, माँ भी, जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहाँ हैं।

मदद चाहती है ये हव्वा की बेटी। यशोदा की हमजिन्स राधा की बेटी।
पयम्बर की उम्मत, जुलेखा की बेटी, जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहाँ हैं।

जरा मुल्क के रहबरोंको बुलाओ
ये कूचे, ये गलियाँ, ये मंजर दिखाओ
जिन्हें नाज है हिन्द पर उनको लाओ............. जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहाँ हैं।

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