Tuesday, April 13, 2021

INA song Bharat Bhagya Vidhata

 Very rare Record of India sung by Dr Col Laxmi  Swaminathan, who later became Dr Laxmi सहगल Dr Laxmi सहगल  had done her MBBS IN 1938 and DGO IN 1939. SHE WAS  CLOSELY ASSOCIATED WITH SUBASH CHANDRA BOSE & JOINED AZAD HIND फौज OR INDIAN NATIONAL ARMY AS CAPTAIN AND LATER PROMOTED TO COL. SHE WAS MINISTER OF WOMEN AFFAIRS OF  GOVERNMENT OF INDIA FORMED BY AZAD  HIND फौज.

INA Chief Subhash Chandra Bose himself altered the lyrics of Jana Gana Mana.... originally penned by Tagore.
जन गण मन SONG IN लक्ष्मी सहगल VOICE  TAKEN FROM 78 RPM RECORDS MADE FOR AZAD HIND फौज (INDIAN NATIONAL ARMY) FOR OUR INDEPENDANCE STRUGGLE.

Saturday, April 10, 2021

इस्लाम क्या है -- अबेटमेंट टू क्राइम ? -- शंकर शरण

अमानुल्ला खान, जरा कुरान में झाँकें!

शंकर शरण

आम आदमी पार्टी के नेता अमानुल्ला खान ने 3 अप्रैल 2021 को एक ट्वीट किया। उन के शब्द हैं, “हमारे नबी की शान में गुस्ताखी हमें बिल्कुल बर्दाश्त नहीं, इस नफरती कीड़े की जुबान और गर्दन दोनो काट कर इसे सख़्त से सख़्त सजा देनी चाहिए। लेकिन हिन्दुस्तान का कानून हमें इस की इजाजत नहीं देता, हमें देश के संविधान पर भरोसा है और मैं चाहता हूँ कि दिल्ली पुलिस इस का संज्ञान ले।” उन्होंने किसी का नाम नहीं लिखा, पर उनके ट्वीट के साथ किसी कार्यक्रम की तस्वीर थी। जिस से लगता है कि वे कहीं किसी के द्वारा कही बात पर नाराज थे।

अच्छा हो, कि दिल्ली पुलिस ही नहीं, देश के सभी लोग यह भी संज्ञान लें कि भारतीय कानून न केवल किसी की गर्दन काटने, बल्कि सार्वजनिक रूप से ऐसी बातें कहना भी अनुचित मानता है। अमानुल्ला हिंसक धमकियाँ देते हुए भी कानून-पाबंद बन रहे हैं।

लेकिन अधिक महत्व का विचारणीय बिन्दु अन्य है। जिस पर हमारी न्यायपालिका, संसद, तमाम राजनीतिक दलों को भी ध्यान देना चाहिए। कि क्या इस्लाम और उन के प्रोफेट का ही सम्मान होना चाहिए? खुद इस्लाम दूसरे धर्मों, उन के देवी-देवताओं, अवतारों, पैगम्बरों, श्रद्धा-स्थलों, श्रद्धा-प्रतीकों के प्रति क्या रुख रखता है? वह मुसलमानों को सिखाता क्या है?

निस्संदेह, इस्लाम दूसरे धर्मों को ‘कुफ्र’, और उन्हें मानने वालों को ‘काफिर’ कह कर अंतहीन घृणा और हिंसा सिखाता है। यह केवल किताबी हुक्म नहीं, बल्कि उस के अनुयायी व्यवहार में गत चौदह सौ सालों से यही कर भी रहे हैं। मक्का से लेकर ढाका तक, और कौंस्टेंटीनोपुल से लेकर कोलंबो, और बाली तक यही उन का इतिहास और वर्तमान है।

अमानुल्ला खान नोट करें – धर्मों, विश्वासों, श्रद्धा-प्रतीकों, श्रद्धा-स्थलों का सम्मान बराबरी से ही हो सकता है! क्या मथुरा, काशी, भोजशाला में जाकर उन्होंने देखा है कि हिन्दू सभ्यता के सब से महान श्रद्धाप्रतीकों भगवान शिव, भगवान कृष्ण, और देवी सरस्वती के सर्वाधिक प्रसिद्ध मंदिरों के साथ इस्लाम के अनुयायियों ने क्या किया – और आज भी कर रहे हैं? क्या अमानुल्ला को मालूम नहीं कि नाइजीरिया, सूडान से लेकर पाकिस्तान, बँगलादेश तक गैर-मुसलमानों के साथ इस्लाम के आम अनुयायी क्या कर रहे हैं?

विविध धर्मों का सम्मान केवल बराबरी से हो सकता है। इसलिए, अमानुल्ला खान को सबसे पहले अपने मजहब के गिरहबान में झाँक कर देखना चाहिए कि वह दूसरे धर्मों, देवी-देवताओं, मंदिरों, चर्च, सिनागॉग, गुरुद्वारे, मठ, और अनुयायियों के प्रति क्या सीख देता और व्यवहार रखता है?

ताकि वे किसी ‘भटके हुए’, ‘मुट्ठी भर मुसलमानों’ वाला बहाना न बनाएं, इसलिए मूल स्त्रोत कुरान को ही उलट कर देखें। सब से प्रमाणिक अंग्रेजी पाठ (मुहम्मद पिकथॉल) या हिन्दी पाठ (मकतबा अल-हसनात) से ही मिलान कर के देखें। कि कुरान गैर-मुसलमानों या काफिरों और उन के देवी-देवताओं को क्या कहता है।

वस्तुतः कुरान ही काफिर को परिभाषित करता है, कि जो अल्लाह और उन के प्रोफेट मुहम्मद को स्वीकार न करे, वह काफिर है। जिस के प्रति कुरान अत्यंत नकारात्मक भाव रखता एवं प्रेरित करता है। कुरान (2:216) ने मूर्तिपूजा को हत्या से भी गर्हित पाप बताया है। कुरान में मूर्तिपूजकों को ‘जानवर’, ‘अंधे’, ‘बहरे’, ‘गूँगे’, (2:171) और ‘गंदे’ (22:30), ‘बंदर’, ‘सुअर’ (5:60) आदि की संज्ञा दी गई है। इस प्रकार, हिन्दू, बौद्ध, जैन, आदि लोगों को सर्वाधिक घृणित मानना सिखाता है। विश्व के सब से प्राचीन, सम्मानित और लगभग पौने 2 अरब लोगों के धर्मों के प्रति यह कैसा सम्मान है? इस के बदले अमानुल्ला खान किस आधार पर इस्लाम के लिए सम्मान की माँग करते हैं?

नोट करें, कुरान में वे बातें कोई अपवाद या इक्की-दुक्की नहीं। उस में आधी से अधिक सामग्री काफिरों पर ही केंद्रित है। जिस में काफिरों के प्रति एक भी अच्छी बात नहीं। काफिर से घृणा की जाती है (98:6, 40:35); काफिर का गला काटा जा सकता है (47:4); मार डाला जा सकता है (9:5); काफिर को भरमाया जा सकता है (6:25); काफिर के खिलाफ षड्यंत्र किया जा सकता है (86:15); काफिर को आतंकित किया जा सकता है (8:12); काफिर को अपमानित किया जा सकता है (9:29); काफिर को दोस्त नहीं बनाया जा सकता (3:28); काफिरों से दोस्ती करने पर मुसलमान को अल्लाह दंड देगा (4-144); जब मुसलमान मजबूत हों तो काफिरों से कदापि शान्ति-सुलह न करें (47: 35); आदि।

कुरान में दूसरे धर्मों, उन के देवी-देवताओं को झूठा कहा गया है। उस के शब्दों में, “एक मात्र अल्लाह सच है, और दूसरे पुकारे जाने वाले देवी-देवता झूठ हैं।” (22:62)। इसी प्रकार, “मुसलमान सत्य पर चल रहे हैं और काफिर झूठ पर।” (47:3)। यही नहीं, अल्लाह के सिवा अन्य देवी-देवताओं को ताना दिया गया है कि उन्हें बुला कर देख लो, बेचारे क्या कर सकते हैं तुम्हारे लिए (7: 194-195)।

कुरान अन्य धर्मों के देवी-देवताओं को निकृष्ट, व्यर्थ बताता है, “जो न किसी को लाभ पहुँचा सकते हैं, न हानि” (25:55)। कुरान के अनुसार जो अल्लाह को न मानकर झूठे ईश्वर मानते हैं, वे झूठे ईश्वर अपने अनुयायियों को प्रकाश से अँधेरे की ओर ले जाते हैं (2:257)। वे जहन्नुम की आग में जाएंगे और वही रहेंगे। आगे, “मुसलमानों का संरक्षक अल्लाह है, काफिरों का कोई संरक्षक नहीं है।” (47:11)।

वस्तुतः, कुरान दूसरे धर्म मानने वालों को भी हर तरह की कटु बातें और अपशब्द कहता है। जैसे, “अल्लाह काफिरों का दुश्मन है” (2:98)। कुरान के अनुसार, “जो हमारी आयतों को नहीं मानते, वे बहरे, गूँगे और अँधे हैं।” (6:39)। इस बात को दुहराया भी गया है। कुरान में अल्लाह कहते हैं, कि “हम ने बिलकुल साफ संकेत (आयतें) भेजी हैं, और केवल बदमाश ही उस से इंकार करेंगे।” (2:99)। उन की खुली घोषणा है कि “काफिरों के लिए दुःखदायी यातना तय है।” (2:104)। साथ ही, “अल्लाह का संदेशवाहक सभी रिलीजनों पर भारी पड़ेगा, चाहे मूर्तिपूजक इसे कितना भी नापसंद क्यों न करें।” (9:33)।

दरअसल, काफिरों के प्रति घृणा और हिंसा के आवाहन कुरान और प्रोफेट मुहम्मद की जीवनी (सीरा) में निरंतर दुहराई गई बात, सिग्नेचर-ट्यून जैसी है। अल्लाह खुद कहता है कि कुरान ‘चेतावनी’ और ‘मेरी धमकी’ है (50:45)।

तो जनाब अमानुल्ला खान, इसे देखते हुए काफिरों का क्या कर्तव्य बनता है? अपने को कोसने वालों को, अपने घोषित दुश्मन को कोई कैसे सम्मान दे सकता है! यदि सीरा और हदीस को मिलाकर पूरा आकलन किया जाए, तो इस्लाम का एक मात्र लक्ष्य है – जैसे भी हो काफिरों का खात्मा। इतने तीखेपन से कि मुसलमानों को अपने सगे-संबंधियों तक से दुराव रखने के लिए कहा गया है। धमकी के साथ।

कुरान में साफ निर्देश है, ‘‘ओ मुसलमानों! अपने पिता या भाई को भी गैर समझो, अगर वे अल्लाह पर ईमान के बजाए कुफ्र पसंद करते हों। तुम्हारे पिता, भाई, पत्नी, सगे-संबंधी, संपत्ति, व्यापार, घर – अगर ये तुम्हें अल्लाह और उन के प्रोफेट, तथा अल्लाह के लिए लड़ने (जिहाद) से ज्यादा प्यारे हों, तो बस इन्तजार करो अल्लाह तुम्हारा हिसाब करेगा।’’ (9: 23,24)।

सो, अमानुल्ला खान अच्छी तरह सोचें, कि धर्मों का मान-सम्मान एकतरफा नहीं हो सकता। आज नहीं तो कल, तमाम ईमामों, अयातुल्लाओं, और उलेमा को दुनिया भर की मस्जिदों से खुली घोषणा करनी होगी कि कुरान में दूसरे धर्मों, देवी-देवताओं, और उन्हें पूजने वालों को जो अपशब्द कहे गए हैं, वे अब खारिज, कैंसिल हैं। मुसलमानों को उस पर ध्यान नहीं देना चाहिए। यदि वे ऐसा नहीं करते, तो एकतरफा इस्लाम को आदर की माँग करने का हक नहीं रखते!

लेखक : शंकर शरण

Tuesday, April 6, 2021

COUNTRY OR CONSTITUTION? -- rsingh

 COUNTRY OR CONSTITUTION?


NB: Country is Bharat. Constitution is “Sarkar”!
Normally they are in synchronised harmony as in the United Kingdom and the United States. In short:
WILL OF THE (ENLIGHTENED & FREE) PEOPLE IS THE WILL OF THE GOVERNMENT. AND THE WILL OF SUCH GOVERNMENT IS THE CONSTITUTION.
 
For example, today a Hindu nationalist and a foremost patriot Shri Narendra Modi is the Prime Minister as per Constitution, and his loyalty to COUNTRY and its PEOPLE is beyond doubt.

Could someone like Mohammed Ali Jinnah come up to Mr Modi and demand Partition? HE WILL BE IN HANDCUFFS IN NO TIME!

Yet in 1940 (till 1947) Mr Jinnah stood tall &  defiant for PARTITION, having sensed Power VACUUM created by appeasing pacifist Mr MK Gandhi. He threatened “rivers of blood” and “civil war” if ignored or refused. Neither “stalwart” Gandhi nor Barrister Nehru missed a wink during sleep! They both enjoyed baby’s sound sleep every night till August 1947 when they suddenly woke up. Water had gone over their heads. The country was doomed!

After the bloody Partition, one became the inspiration and the “guiding light” of “Broken” Bharat, the other the "Government of India"!

Now the question arises, “Did they, especially Nehru, since Gandhi was eliminated soon afterwards by a patriot, have the moral or Constitutional right, or authority, to order the army to vacate their forts and fortresses across the Western frontier and withdraw down to Wagah/Atari in the middle of our Punjab, and similar despicable treatment meted to to Bengal? India’s two grand provinces, each the size of France or Germany, lay bisected, and left bleeding with the Hindus being ethnically cleansed.

The question is, “Who commanded the ULTIMATE loyalty of the Indian Armed Forces? Our eternal COUNTRY (INDIA) OR the transient GOVERNMENT of Nehru, or Nehru himself that was "here today and gone tomorrow"?

Thereafter, in January 1948, did Nehru, the anglicised “Brown Sahib”, an alien among the natives (mostly Hindus), have the authority, moral as well as constitutional, to stop our ADVANCING Army from recovering North Kashmir from the enemy, and declare “cease-fire”?
 
I submit he had as much right and authority to order the Army to withdraw as did Emperors Babur and Aurangzeb or Tipu Sultan, the “Constitutional” heads of Hindusthan at the time. An ALIEN imposed on top cannot have any right of the kind!
 
Hence the post-Partition Government of “mutilated” Bharat (India) was ILLEGAL. Only Referendum could grant it the legitimacy and the authority of the People! Referendum never took place. Hence the borders of Bharat (since 1947) are illegitimate and unacceptable!

There could be NO “proper” government of India if there was NO "proper" India that now extends from Wagah to Hoogly, MINUS Khyber Pass and Chittagong!

The present day Bharat has eternal LEGAL claim over that (pre Partition) India, and the claim is not time barred! Why is Bharat collapsed, or reconciled, ready to remain a mere FRAGMENT of the ORIGINAL?

Constitutional scholars may ponder over this, and issue guidelines for the FUTURE of Hindusthan to the present “SARKAR”.

Thinking with a logical head, we discover that Bharat has NO legitimacy as a country. It was recreated by bullies and fraudsters, not by its PEOPLE through Referendum.
 
rajput
4 April 2021

Monday, April 5, 2021

संकेत कुलकर्णी (लंडन) गोडसे- गांधी

 ३० जानेवारी १९४८ ला गांधीहत्या झाली. जगभरातून शोक व्यक्त झाला. हत्या करणाऱ्यांना अटक झाली. खटला चालला. शिक्षा सुनावली गेली. आणि त्याची अंमलबजावणी म्हणून फाशीही झाली. 

ह्याच संदर्भात गांधीहत्येच्या खटल्याचे कागदपत्र वाचताना नथुराम गोडसेंच्या जबानीत मला असा एक एक उल्लेख आढळला की, “...जानेवारी १९४८ मध्ये गांधींनी सुरु केलेला उपवास सोडण्यासाठी त्यांनी ज्या ७ अटी ठेवल्या होत्या त्या सर्व हिंदूविरोधी होत्या...” मला खूप विचार करूनही ह्या नेमक्या अटींपैकी एकही आठवली नाही. थोडंफार शोधूनही कुठेच काही मिळालं नाही. आपल्याला शाळेत (किंवा ‘सरकारी’!) इतिहास सांगताना ह्या अटी नेमक्या काय होत्या हे कधीच सांगितले गेले नाही. जानेवारी १९४८ मध्ये गांधी हिंदू-मुसलमान ऐक्यासाठी उपासाद्वारे प्रयत्न करत होते वगैरे वरवरचे उल्लेखच सगळीकडे आहेत. अनेकांनी ते वाचलेही असतील. मग गोडसेंनी त्यांच्या जबानीत असं का सांगावं की त्या सर्व अटी हिंदूविरोधी होत्या? अश्या काय अटी होत्या त्या?

ब्रिटीश लायब्ररीत जुने न्यूजपेपर आर्काईव्झ शोधणं सुरु केलं. १९६६ पासून इंग्लंडमध्ये वास्तव्यास असणारे ज्येष्ठ इतिहाससंशोधक आणि लेखक डॉ वासुदेव गोडबोलेही योगायोगाने नेमका हाच संदर्भ बराच काळ शोधत आहेत असे समजले. 

मग त्याच सुमाराचे सहज कुतूहल म्हणून बाकीचे जुने इंग्रजी न्यूजपेपर्स शोधायला सुरुवात केली. १९ जानेवारीच्या ‘डर्बी इव्हिनिंग टेलिग्राफ’ ह्या वर्तमानपत्रांत गांधींनी उपास सोडल्याची बातमी दिसली आणि सोबत हापण उल्लेख दिसला की त्या सात अटींपैकी एक अट ही होती की सप्टेंबर १९४७ च्या दंग्यानंतर दिल्लीतल्या ज्या ११७ मशीदी ज्यांची (हिंदू आणि शीखांनी) देवळं किंवा घरं बनवली होती त्यांच्या पुन्हा मशीदी बनवण्यात याव्यात. हे वाचून मला नाही म्हटलं तरी धक्काच बसला. एकतर कोणत्याही  भारतीय पेपरमध्ये ह्यातले कोणतेच उल्लेख नसावेत आणि ह्या सात अटी जर सगळ्याच अश्याच असतील तर मग?

हा शोध आता सोडून द्यावा असा विचार मनांत येत असतानाच ‘द यॉर्कशायर पोस्ट’ चा १९ जानेवारी १९४८ चा अंक पहाण्यात आला आणि त्यात ह्या ७ अटी एकदाच्या मिळाल्या. काय होत्या बरं ह्या अटी? खाली मी त्या अटी देतोय. हा अटींवरून ह्या अटी खरंच गोडसेंनी सांगितल्याप्रमाणे हिंदूविरोधी होत्या का हे ज्याचं त्याने ठरवावं. गांधींचे विचार चूक किंवा बरोबर हे ज्याचं त्याने ठरवावं. माझं मत मी सांगणार नाहीये. 

अट १ - दिल्लीजवळच्या मेहरौली येथे मुसलमानांना त्यांचा उरूस साजरा करायची परवानगी असावी. (मेहरौलीत ख्वाजा कुतुबुद्दीनची मशीद होती. दंग्यांत त्याची मोडतोड झाली होती. हिंदू आणि शीखांनी त्याच्या आजूबाजूच्या मुसलमानांना हाकलून लावलेले होते. ह्या ख्वाजा कुतुबुद्दीनचा उरूस २६ जानेवारी १९४८ रोजी व्हायचा होता. पण तो करताना त्यात अडथळे येण्याची शक्यता होती. गांधींना हे नको होते.)

अट २ - दिल्लीतून पळून गेलेल्या मुसलमानांना सुरक्षितपणे परत येऊ द्यावे. 

अट ३ - दिल्लीतल्या ज्या ११८ मशीदींची देवळे बनवण्यात आलेली आहेत त्या मशीदी पुन्हा मुसलमानांना देऊन टाकण्यात याव्यात. 

अट ४ - संपूर्ण दिल्ली मुसलमानांसाठी सुरक्षित बनवण्यात यावी. 

अट ५ - रेल्वेतून प्रवास करणाऱ्या मुसलमानांच्या सुरक्षिततेची हमी देण्यात यावी. 

अट ६ - हिंदू आणि शीखांनी मुसलमानांवर टाकलेला आर्थिक बहिष्कार मागे घेण्यात यावा. 

अट ७ - दिल्लीत उरलेले काही मुस्लिम वस्त्यांचे भाग पाकिस्तानातून आलेल्या हिंदू किंवा शीख निर्वासितांनी वापरू नयेत. 

सोबत ह्या सगळ्या कात्रणांचे फोटोही पहाता येतील. जाताजाता रामायणातल्या एका श्लोकाची मात्र नक्की आठवण करून देऊ इच्छितो:

मरणान्तानि वैराणि निवॄत्तं न: प्रयोजनम् |

क्रीयतामस्य संस्कारो ममापेष्य यथा तव || (रामायण ६ - १०९ - २५)

इत्यलम्!

- संकेत कुलकर्णी (लंडन)


फोटो: ‘टाईम्स ऑफ इंडीया’ १९ जानेवारी १९४८ ज्यात फक्त ७ अटींचा उल्लेख आहे.


१९ जानेवारी १९४८ मधला ‘डर्बी इव्हिनिंग टेलिग्राफ’.


‘द यॉर्कशायर पोस्ट’ चा १९ जानेवारी १९४८ चा अंक आणि त्यातल्या ७ अटी.

Sunday, April 4, 2021

Synopsis-- Webinar onTemples- 4th Apr 2021

 Synopsis of  the Webinar on the topic Temples- on 4th April- in googke meet.


 Temples are the soul of this country .In our land where the human being seeking moksha is the ultimate goal. Our culture tradition, art, music and dance are design for human beings to achieve this goal. This culture  and tradition give us immense strength. Because of its strength it was able to withstood 1500 years invasion of Moguls and British.  Our is the only culture which was able to retain its religion tradition. wherever Moguls and European invaders colonised they converted the native people either into Islam or Christian. We withstood this aggressive invasion because of our spiritual knowledge. This spiritual knowledge which is in temples unfortunately after Independence gone to the hands of government. When Government saying it is secular it should not interfere with  religious affairs of the society. Unfortunately all other religion people were given freedom to manage their own place of worship except Hindus. 

In our own country where 80% to 85% Hindu majority are treated like a secondary citizen . Time has come to stop this kind of attitude and approach of the government. Free Temples from Government and save Great culture and tradition of our Society