Thursday, November 19, 2015

नरेंद्र दुबे रचनात्मक कार्यों के पितामह

रचनात्मक कार्यों के पितामह नरेंद्र दुबे का निधन

 इन्दौर 18 नवंबर। प्रख्यात सर्वोदय कार्यकर्ता श्री नरेंद्र दुबे का 80 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वे कुछ दिनों से बीमार थे। श्री दुबे संत विनोबा के विचारों से प्रेरित थे। युवावस्था में उन्होंने खादी धारण करने का संकल्प लिया और उसे जीवनभर निभाया। उनकी दृष्टि सदैव गरीबों के उत्थान की ओर रही। उन्होंने भूदान आंदोलन, ग्रामदान आंदोलन और गोरक्षा सत्याग्रह तथा खादी आंदोलन में सक्रिय भाग लिया। वे खादी ग्रामोद्योग आयोग प्रमाण पत्र समिति के अध्यक्ष और खादी ग्रामोद्योग आयोग के सदस्य भी रहे। अंतिम संस्कार 19 नवंबर को प्रातः 11 बजे पंचकुइया मोक्षधाम पर किया जाएगा।

श्री नरेंद्र दुबे का जीवन कार्य

जीवन में उनके लिए कुछ भी पाना कठिन नहीं था। उनका परिवार इन्दौर के राजपरिवार से जुड़ा था। उनके काका सुरेंद्रनाथ दुबे मध्यभारत के विकास आयुक्त थे और चचेरे भाई शरदचंद्र्र दुबे भारत सरकार में रक्षा सचिव थे। लेकिन उन्होंने बाल्यकाल में ही तय कर लिया था कि सरकारी नौकरी में नहीं जाना और व्यापारी के यहां नौकरी नहीं करना। उनकी योग्यता और दक्षता को देखते हुए स्वयं प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने श्री वसंत साठे के माध्यम से उन्हें अखिल भारत खादी तथा ग्रामोद्योग आयोग का अध्यक्ष मनोनीत करने का निमंत्रण भेजा, परंतु संत विनोबा की सलाह को मानकर उन्होंने विनम्रतापूर्वक उस पद को अपनाने से इनकार कर दिया। दूसरी ओर संपूर्ण क्रांति के प्रणेता लोकनायक जयप्रकाष नारायण के विचारों से सार्वजनिक रूप से असहमति जताने वाले नरों में इंद्र श्री नरेंद्र दुबे का 18 नवंबर 2015 को 80 वर्ष की आयु में निधन हो गया।
त्यागी और तपस्वी सर्वोदय विचार के पथिक श्री नरेंद्र दुबे के मन पर महात्मा गांधी और  खादी की छाप बाल्यकाल में ही पड़ गयी थी जब वे अपनी मां गंगादेवी के साथ वर्धा स्थित सेवाग्राम आश्रम गए थे। काॅलेज में अध्ययन के दौरान उन्होंने प्रो.जमनालाल जैन और श्यामसुंदर झंवर को खादी पहने पाया तो श्री दुबे को भी खादी पहनने की प्रेरणा हुई। वे गांधी विचार के गहन अध्ययन में जुट गए। प्रो.अंबाराम मुनीम काॅलेज की नौकरी छोड़कर भूदान आंदोलन में चले गए। उनके साथ उन्होंने इन्दौर नगर में सम्पत्तिदान पदयात्रा प्रारंभ की। जब परिवार वालों को उनके अध्ययन की चिंता सताने लगी, तब उन्हें एम.काॅम. करने के लिए ग्वालियर भेज दिया गया। लेकिन श्री दुबे कहां मानने वाले थे। उनके सार्वजनिक जीवन को वहां और विस्तार मिला और उन्होंने काॅलेज में काॅमनवील पार्टी बनायी और वे काॅलेज की संसद में प्रधानमंत्री बने। अब परिवार वालों ने उन्हें वापस इन्दौर बुला लिया। श्री दुबे अन्य साथियों के समान कस्तूरबाग्राम में रहकर सेवा कार्य और अध्ययन करने लगे। अच्छे अंकों से एम.काॅम. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद भी उन्होंने सेवा का मार्ग ही चुना। लेकिन सर्वोदय अर्थव्यवस्था के अध्ययन के लिए उन्होंने स्वयं को शोधाथर््ीा के रूप में पंजीकृत कराया और ट्र्स्टीषिप विषय चुना। अध्ययन पूरा किया लेकिन पीएचडी की उपाधि के लिए उसे जमा नहीं कराया। बाद में उसकी पुस्तक प्रकाषित हुई, जिसकी भूमिका सुप्रसिद्ध अर्थषास्त्री श्रीमन्नारायण ने लिखी। कस्तूरबाग्राम में रहकर उन्होंने कस्तूरबा दर्षन त्रैमासिक पत्रिका का संपादन किया। विनोबाजी के इन्दौर आगमन पर उन्होंने अपनी पत्नी के साथ मिलकर नगर में सर्वोदय पात्र अभियान चलाया। इसके बाद दुबे जी ग्रामसेवा करने इन्दौर के निकट स्थित ग्राम माचला चले गए। वहां चलने वाले विद्यालय के वे प्राचार्य मनोनीत हुए। जब विनोबा जी ने ग्रामदान तूफान शुरू किया, तब वे माचला की सेवा से मुक्त होकर ग्रामदान आंदोलन मेें जुट गए। उनकी कुषल संगठन योग्यता से प्रभावित होकर उन्हें मध्यप्रदेष सर्वोदय मंडल का मंत्री बनाया गया।
खादी ग्रामोद्योग आयोग की पहल पर मध्यप्रदेष खादी संस्था संघ की स्थापना की गई। खादी कार्य को नयी दिषा देने के लिए श्री दुबे जी को इसका अध्यक्ष बनाया गया। उन्होंने बीस वर्ष तक निरंतर संस्था संघ की सेवा की और प्रदेष के खादी कार्य को आगे बढ़ाया। केंद्रीय गांधी स्मारक निधि दिल्ली ने श्री दुबे जी को मध्यप्रदेष गांधी स्मारक निधि का मंत्री मनोनीत किया। सांप्रदायिक दंगों के शमन के लिए कस्तूरबा शांति सेना विद्यालय बनाया गया। इसने इन्दौर में अषांति की रोकथाम में खूब काम किया। फलस्वरूप इसे दिल्ली का स्वामी प्रणवानंद शांति पुरस्कार दिया गया।
श्री नरेंद्र भाई की संगठन कुषलता से प्रभावित होकर श्री जयप्रकाष नारायण ने उन्हें सर्व सेवा संघ में संयुक्त मंत्री पद पर मनोनीति किया। इस दौरान उनका विनोबा जी से निकट संपर्क आया और उनकी पहचान विनोबा जी के विचारो के प्रवक्ता के रूप में बनी। बिहार स्थित सहरसा में उन्होंने ग्रामदान पुष्टि का सघन कार्य किया। चम्बल के बागियों के समर्पण का संयोजन कार्य श्री दुबे जी ने ही किया।
जयप्रकाष नारायण के संघर्ष आंदोलन से श्री दुबे जी हमेषा असहमत रहे। उनका स्पष्ट मत है कि रचनात्मक कार्यकर्ताओं को राजनीति में नहीं जाना चाहिए। वे देष में आपातकाल जैसी परिस्थिति निर्मित करने के लिए जयप्रकाष नारायण को जिम्मेदार मानते हैं। मतभेदों को चलते श्री दुबे जी ने सर्व सेवा संघ से त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद उन्हें भूदान-रजत जयंत समिति का संयोजक बनाया गया। उनके आग्रह पर तत्कालीन राष्ट्र्पति श्री फखरुद्दीन अली अहमद ने बंगलोर में पदयात्रा कर अभियान का शुभारंभ किया। इस दौरान एक साल में 30 लाख एकड़ भूमि का वितरण हुआ।
जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पवनार में विनोबाजी से मिलने गईं, तब उनका परिचय भी दिया गया। इंदिरा गांधी ने श्री दुबे जी को खादी ग्रामोद्योग आयोग के सदस्य के रूप में मनोनीत किया। जब खादी आयोग की सदस्यता से मुक्त हुए तब विनोबा जी के आदेष से उन्होंने पवनार गांव में वस्त्र-स्वावलंबन का कार्य हाथ में लिया। श्री नरेंद्र दुबे ने खादी को पहली बार आधुनिक तकनीक से जोड़ा और गोपुरी वर्धा में पूनी संयंत्र लगाया, जो आज भी काम कर रहा है। इसके बाद तो देष की अनेक संस्थाओं ने खादी में इस तकनीक को अपना लिया। इसके बाद वे खादी ग्रामोद्योग आयोग की प्रमाण पत्र समिति के अध्यक्ष नियुक्त हुए। इस बीच विनोबा जी ने मुम्बई के देवनार कतलखाने पर सत्याग्रह का आदेष दिया। इसके चलते श्री दुबे जी ने मर्यादा का ध्यान रखते हुए कोई भी सरकारी पद धारण नहीं किया। गोवंष केा वैज्ञानिक आधार प्रदान करने के लिए गोविज्ञान भारती की स्थापना की और गोविभा मासिक पत्रिका निकालना प्रारंभ किया। यह आज भी प्रकाषित हो रही है। सेवा कार्यो के दौरान उन्हें इंग्लैंड जाने का मौका मिला, जहां उन्होंने गांधी-विनोबा विचारों का प्रचार किया। विनोबा जी द्वारा स्थापित खादी मिषन के वे सह-संयोजक रहे।
डाॅ.पुष्पेंद्र दुबे
फोन: 9754220781

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