भारतीय समाज, संस्कृति और दुविधा
आज भारतीय समाज अपनी संस्कृतिको लेकर एक दुविधा में है। पहले उन्हींकी बात करें जो मानते हैं कि हमारी सांस्कृतिक विरासत महान है -- जो मानते हैं कि एक समयमें भारत विश्वगुरु था -- और चाहते हैं कि फिर से बने -- जो जो मानते हैं कि एक समय में भारत सोनेकी चिडिया हुआ करता था -- एक समृद्ध आर्थिक सशक्तता की पहचान।
सबसे भारी दुविधा तो इन्हींकी है। क्योंकि इनके सम्मुख दो विचार हैं --पहला विचार कहता है कि भले ही विरासत वैसी रही हो -- पर उसका उपयोग केवल पश्चिमी देशोंको जताने के लिये है -- कि देखो हमारी अस्मिता कोई ऐसी वैसी नही है -- हमारे पास भी आत्माभिमान है कि कभी हम ऐसे थे।
Wednesday, May 25, 2016
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