इस ढीली दंड प्रक्रिया का बदलिए
नौ जनवरी, १९९९ की रात को भुवनेश्रवर-बारंग-कटक मार्ग पर श्रीमती अंजना मिश्र के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। इस धटना के दो चश्मदीद गवाह भी थे, जिनमें से एक अंजना के साथी सुतनु और दूसरा टैक्सी ड्राइवर राऊत थे। इन दोनो ने भी अपने बयान पुलिस को दिए जिनमे इस आरोप की पुष्टि की गई है। व्यक्तियों के नाम भी पुलिस ने जान लिये है और ११जनवरी, एक आरोपी साहू पकड़ा भी जा चुका है। साहू ने पुलिस के समक्ष अपराध स्वीकार भी कर लिया था और उस जगह की पहचान भी कर ली जहां बलात्कार किया गया था। इसी जगह की पहचान अंजना के दो गवाहों ने भी कर ली है। पुलिस को मेडिकल रिर्पोट भी मिल गई है। यह रिर्पोट प्राथमिक रिर्पोट है और बेहद अपर्याप्त रुप से को ----- करते है। अब सवाल यह है कि जब इस जघन्य रिर्पोट पुलिस में लिखी जा चुकी है और कम से कम एक अपराधी ने अपराध भी मान लिया है और गवाह तथा अन्य सबूत भी पुलिस के पास है। एक गंभीर सवाल यह उठता है कि भारत की शिक्षित व महिलाओं का क्या करते बनता है? हम समझ सकते है जब अंजना जैसी कोई धटना हो रही है या जब तक कोई भी अपराधी मौजूद है तब तक देश की कोई महिला इस तरह के खतरे से खाली नही है। क्या यह समझने की जिम्मेदारी भी हमारी नहीं कि जब तक बलात्कार करते वाले हर अपराधी को तत्काल और तत्परता से सजा नही दी जाती तब तक समाज मे ऐसे ही और अपराध अधिकाधिक होते रहेगे? और इस उलझन की जिम्मेदारी भी हमारी ही है कि अपराधी को दंड मिलने में जितनी देर हो रही है उतना ही हमारा खतरा बढ़ रहा है। मेरे विचार से बारंग आसपास के गाँवों की महिलाएं भी जानती और समझती होगी कि जब साहू और उसके अन्य दो साथी (जो बारंग के ही निवासी है) खुले रहेगे या जमानत पर रिहा होते रहेगे तब तक उन महिलाओं के लिए भी खतरा शुरु हो जाता है जैस अंजना मिश्रा के साथ हुआ।
Tuesday, October 27, 2009
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