Friday, November 6, 2020

हाथरस डायरी

 🔴भारत बचाओ मंच 🔴




भारत जीता जागता राष्ट्र पुरुष है।

इसका कँकड कँकड शंकर, बिन्दु बिन्दु  गंगाजल है। 


इसके अस्तित्व के साथ ही हमारा  अस्तित्व है 


हम सम्पूर्ण जीवन इसकी सेवा के लिए। 

हमारी मृत्यु हो वह भी इसकी रक्षा  के लिए 


यह हम सबका सामूहिक सँकल्प हैं। 



भारत की संतानों में  कोई छोटा कोई बडा कैसे हो सकता है 

सबका बराबर महत्व है 

हमारा रक्त एक

हमारी शरीर एक

हमारी माँ एक

हमारा संस्कृति एक है 


हम जैन, सिख, बौद्ध, सनातनी, मूर्ति पूजक, निरंकारी, आदिवासी, गिरिवासी, हो सकते हैं। 



किन्तु जन्म देने वाली माँ एक है।



तो विधर्मियों की कुटिल चाल ने 

हमको पृथकता के राह पर खडा किया है 

षड्यन्त्रों को शीघ्रता से पहचाने

मूल की ओर  वापस लौटें



।भारत बचाओ विश्व बचाओ। 


इसी  कारण हाथरस में जो कई वाल्मीकिओने बौद्ध धर्म में परिवर्तन किया उसे समय रहते रोका जाना चाहिए था या अभी भी उन्हें वापस बुलाया जा सकता है  ! वास्तव में ब्राह्मणों को ही आगे आकर वाल्मीकि समाजके लोगोंके साथ भाईचारा स्थापित करना होगा और इसका एक सहयोगी सूत्र है परम गुरु आराध्य कवि श्री वाल्मीकि ! परंतु इसकी ओर ब्राह्मण समाज ध्यान नहीं दे रहा ! दूसरी बात कि किसी जमानेमें ब्राह्मण समाजके विद्वान पंडित वनोंमें रहकर गुरुकुल चलाते थे और उस समय उनके सारे सहकर्मी वनोंमें ही रह कर उनका सहयोग करते थे हाथ बटाते थे!  आज ब्राह्मण समाज वनोंसे बाहर निकलकर शहरोंमें आ बसा है और अध्ययन अध्यापन उपासना साधना व अन्वेषणाको छोड़कर बिजनेसमें व नौकरीमें लगा हुआ है ! ब्राह्मण समाजके कुछ लोगोंको वापस वनजीवन की ओर मुड़ना होगा और वनवासी साथियों के साथ खड़े रहना होगा ! उनकी तरह जीकर दिखाना होगा और अपनी आलोचना की परंपरा को आगे बढ़ाना होगा ! उस परंपरा में उन वनवासियों को साझेदारी देनी होगी !

तो वाल्मीकि दलित समाज के साथ जब तक ब्राह्मण खड़ा नहीं रहेगा, इसी प्रकार वनवासी समाज के साथ जब तक ब्राम्हण खड़ा नहीं रहेगा तब तक सनातन संस्कृति का बचना कठिन है

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