निर्बलसे लडाई बलवानकी
ये कहानी है दियेकी और तूफानकी
एक रात अंधियारी, थीं दिशाएँ कारी कारी, मंद मंद पवन था चल रहा.
अंधियारेको मिटाने, जगमें ज्योत जलाने, एक नन्हासा दिया था कहीं जल रहा.
अपनी धुनमें मगन, उसकी तनमें अगन,
उसकी लौमें लगन भगवानकी.
ये कहानी है दियेकी और तूफानकी...
कहीं दूर था तूफान, दियेसे था बलवान, सारे जगको मसलने मचल रहा.
झाड हो या पहाड, देऊँ पलमें उखाड, सोच सोच के जमींपे था उछल रहा.
देख नन्हासा दिया उसने हमला किया,
अब देखो लीला विधिके विधानकी
ये कहानी है दियेकी और तूफानकी...
दुनियाने साथ छोडा, ममताने मुख मोडा, अब दियेपे ये दुख बढने लगा.
पर हिम्मत ना हार, मनमें मरना विचार, अत्याचारकी हवासे लडने लगा.
सर उठाना या झुकाना, या भलाईमें मर जाना,
घडी आई उसके भी इम्तिहानकी
ये कहानी है दियेकी और तूफानकी...
फिर ऐसी घडी आई, घनघोर घटा छाई, अब दियेका भी दिल लगा काँपने.
बडे वेगसे तूफान, आया भरता उडान, उस छोटेसे दियेका बल मापने.
तब दिया दुखियारा, वो बेचारा बेसहारा,
चला दाँवपे लगाने बाजी प्राणकी
ये कहानी है दियेकी और तूफानकी...
लडते लडते वो थका, पर बुझ ना सका, उसकी ज्योतमें था बल रे सच्चाईका.
चाहे था वो कमजोर, पर टूटी नही डोर, उसने बीडा था उठाया रे भलाईका.
हुआ नही वो निराश, चले जबतक साँस,
उसे आस थी प्रभुके वरदानकी
ये कहानी है दियेकी और तूफानकी...
सर पटक पटक, पग झटक झटक, न डिगा पाया दियेको अपनी आनसे
बार बार वार कर, अन्तमें हार कर, तूफान भागा रे मैदानसे
अत्याचारसे उभर, जली ज्योत अमल,
रही अमर निशानी बलिदानकी
ये कहानी है दियेकी और तूफानकी...
--- कवि प्रदीप की अद्भुत रचना
Thursday, August 19, 2010
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