इसी पृथ्वी पर विद्यमान है वह जगह जहांँ साक्षात् भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था।
-- उत्तराखंड का त्रियुगीनारायण मंदिर ही वह पवित्र और विशेष पौराणिक मंदिर है। इस मंदिर के अंदर सदियों से अग्नि निरंतर प्रज्वलित है।
शिव-पार्वती जी ने इसी पवित्र अग्नि को साक्षी मानकर विवाह किया था। यह स्थान रुद्रप्रयाग जिले का एक भाग है।👇
-- त्रियुगीनारायण मंदिर के बारे में ही कहा जाता है कि यह भगवान शिव जी और माता पार्वती का शुभ विवाह स्थल है।👇
-- मंदिर के अंदर प्रज्वलित अग्नि कई युगों से जल रही है इसलिये इस स्थल का नाम त्रियुगी हो गया यानी अग्नि जो तीन युगों से जल रही है।
-- त्रियुगीनारायण हिमावत की राजधानी थी। यहांँ शिव -पार्वती के विवाह में विष्णु ने पार्वती के भाई के रूप में सभी रीतियों का पालन किया था जबकि ब्रह्मा इस विवाह में पुरोहित बने थे।
--उस समय सभी संत-मुनियों ने इस समारोह में भाग लिया था। विवाह स्थल के नियत स्थान को ब्रह्म शिला कहा जाता है जो कि मंदिर के ठीक सामने स्थित है। इस मंदिर के माहात्म्य का वर्णन स्थल पुराण में भी मिलता है।
-- विवाह से पहले सभी देवताओं ने यहांँ स्नान भी किया और इसलिये यहांँ तीन कुंड बने हैं जिन्हें रुद्र कुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्मा कुंड कहते हैं।
-- इन तीनों कुंडों में जल सरस्वती कुंड से आता है। सरस्वती कुंड का निर्माण विष्णु की नासिका से हुआ था और इसलिये ऐसी मान्यता है कि इन कुंड में स्नान से संतानहीनता से मुक्ति मिल जाती है।
-- जो भी श्रद्धालु इस पवित्र स्थान की यात्रा करते हैं वे यहांँ प्रज्वलित अखंड ज्योति की भभूत अपने साथ ले जाते हैं ताकि उनका वैवाहिक जीवन शिव और पार्वती के आशीष से हमेशा मंगलमय बना रहे।
-- वेदों में उल्लेख है कि यह त्रियुगीनारायण मंदिर त्रेतायुग से स्थापित है जबकि केदारनाथ व बदरीनाथ द्वापरयुग में स्थापित हुए।
यह भी मान्यता है कि इस स्थान पर विष्णु भगवान ने वामन अवतार लिया था।
-- पौराणिक कथा के अनुसार इंद्रासन पाने के लिये राजा बलि को सौ यज्ञ करने थे, इनमें से बलि 99 यज्ञ पूरे कर चुके थे।
तब भगवान् विष्णु ने वामन अवतार लेकर रोक दिया जिससे कि बलि का यज्ञ भंग हो गया। यहांँ विष्णु भगवान् वामन देवता के रूप में पूजे जाते हैं।
वागर्थाविवसंपृक्तौ वागर्थपरिपत्तये
जगत्पितरौ वंदे पार्वतीपरमेश्वरौ
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